आज बेटियों का दिन है। मेरी बड़ी बेटी दृष्टि के जन्म पर यह कविता अपने आप फूटी थी, आत्मा की गहराइयों से। आज आप सब दोस्तों के लिए यह कविता दुनिया की तमाम बेटियों के नाम करता हूं।
दृष्टि तुम्हारे स्वागत में
मरुधरा की तपती रेत पर बरस गयी
सावन की पहली बरखा
पेड़-पौधे लताएं लगीं झूमने
हर्ष और उल्लास में
बाघनखी* की चौखट छूती
लता भी नहा गयी
प्रेम की इस बरखा में
गुलाब के पौधे पर भी आज खिला
बड़ा लाल सुर्ख़ फूल
उसने भी कर लिया
सावन की पहली बूंदों का आचमन
अनार ने भी पी लिया
मीठा-मीठा पानी
अनार के दानों में
अब रच जाएगी मिठास
और सुर्ख़ होंगे
पीले-गुलाबी दाने
तुम्हारे स्वागत में बरखा ने
नहला दिया शहर को सावन के पहले छंद से
महका दिया धरती को सौंधी-सौंधी गंध से
मोगरे पी कर मेहामृत
बिखेर दी चारों दिशाओं में
ताज़ा फूलों की मादक गंध
यह नहाया हुआ शहर
ये दहकने को आतुर अनार
मुस्कुराता गुलाब
बढ़ती-फैलती बाघनखी की लता
सब कर रहे हैं तुम्हारा स्वागत।
दृष्टि तुम्हारे स्वागत में
दृष्टि
तुम्हारे स्वागत मेंमरुधरा की तपती रेत पर बरस गयी
सावन की पहली बरखा
पेड़-पौधे लताएं लगीं झूमने
हर्ष और उल्लास में
बाघनखी* की चौखट छूती
लता भी नहा गयी
प्रेम की इस बरखा में
गुलाब के पौधे पर भी आज खिला
बड़ा लाल सुर्ख़ फूल
उसने भी कर लिया
सावन की पहली बूंदों का आचमन
अनार ने भी पी लिया
मीठा-मीठा पानी
अनार के दानों में
अब रच जाएगी मिठास
और सुर्ख़ होंगे
पीले-गुलाबी दाने
तुम्हारे स्वागत में बरखा ने
नहला दिया शहर को सावन के पहले छंद से
महका दिया धरती को सौंधी-सौंधी गंध से
मोगरे पी कर मेहामृत
बिखेर दी चारों दिशाओं में
ताज़ा फूलों की मादक गंध
यह महकता मोगरा
यह सौंधती मरुधरायह नहाया हुआ शहर
ये दहकने को आतुर अनार
मुस्कुराता गुलाब
बढ़ती-फैलती बाघनखी की लता
सब कर रहे हैं तुम्हारा स्वागत।
*बाघनखी एक खूबसूरत कांटेदार बेल।